जगदलपुर का ऐतिहासिक दलपत सागर दशकों से गंभीर संकट में है, लेकिन इस संकट के सामने स्थानीय विधायक और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष किरण देव के प्रयास विवादों में घिरे हुए हैं। पिछले 20 वर्षों में दलपत सागर की सफाई और विकास के लिए करोड़ों रुपए खर्च हो चुके हैं, जिनमें बड़ी हिस्सेदारी विधायक किरण देव के कार्यकाल की भी है। बावजूद इसके, दलपत सागर की हालत आज भी दयनीय बनी हुई है और यह जलाशय जलकुंभी, प्रदूषण और अतिक्रमण से जूझ रहा है।

स्थानीय जनप्रतिनिधि साफ तौर पर आरोप लगाते हैं कि विधायक किरण देव के कार्यकाल में सफाई और संरक्षण के नाम पर करोड़ों रुपए का दुरुपयोग हुआ है। आरोप है कि सफाई के लिए स्वीकृत धनराशि का एक बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचार और गड़बड़ी के चलते सही दिशा में नहीं पहुंचा। जलकुंभी को हटाने के लिए योजना बनाते हुए भी कई सालों से जमीनी स्तर पर कोई ठोस काम नहीं हुआ।

एक विवादित बंड का निर्माण, जो कि गैरकानूनी बताया गया है, विधायक के महापौर कार्यकाल में हुआ था और अब तक उसे हटाने की मांग जारी है। यह बंड दलपत सागर की जलधारा को बाधित करता है और तालाब के जल स्तर को प्रभावित करता है। इसके बावजूद, अभी तक उस बंड को हटाने या सुधारने का कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
दलपत सागर में लगातार बढ़ते प्रदूषण और जलकुंभी के बावजूद विधायक और स्थानीय प्रशासन की तरफ से मौजूदगी और जवाबदेही कमतर दिखाई देती है। साफ-सफाई कार्य बार-बार राजनीति का विषय बनता है, वहीं करोड़ों रुपए खर्च होने के बाद भी तालाब की हालत में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं देखा गया है। जनता का सवाल है कि क्या विधायक किरण देव वाकई दलपत सागर की समस्या को गंभीरता से ले रहे हैं या यह सिर्फ चुनावी मुद्दा बनकर रह गया है?
दलपत सागर : इतिहास, पुनरुद्धार प्रयास और वर्तमान स्थिति

जगदलपुर के दिल में स्थित दलपत सागर छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी कृत्रिम झीलों में से एक है। लगभग 400 वर्ष पहले राजा दलपत देव काकतीय ने इसे वर्षा जल संग्रहण और कृषि के लिए बनाया था। यह झील कभी करीब 350 एकड़ में फैली हुई थी और इसके बीचों बीच एक द्वीप पर प्राचीन मंदिर है, जो इसकी ऐतिहासिक महत्ता को दर्शाता है।
लाखों करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी क्यों बदतर है स्थिति?
बीते 20 वर्षों में स्थानीय प्रशासन और सरकार द्वारा दलपत सागर का कायाकल्प करने के लिए कई प्रयास किए गए हैं। पूर्व महापौर संतोष बापना के कार्यकाल में तीन करोड़ रुपए की लागत से म्यूजिक फाउंटेन लगाया गया था। इसके बाद किरण सिंह देव के कार्यकाल में चार से पांच करोड़ रुपए की लागत से झील के बंड का निर्माण हुआ। जतिन जायसवाल और सफीरा साहू के समय भी सफाई और संरक्षण हेतु करोड़ों रुपए खर्च किए गए, जिसमें व्हील हार्वेस्ट मशीन खरीदना भी शामिल था।

फिर भी, तालाब की स्थिति में कोई स्थायी सुधार नहीं हुआ। जलकुंभी, प्रदूषण और अतिक्रमण ने इस झील को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। मानसून के बाद भी जलकुंभी की समस्या जस की तस बनी हुई है। प्रदूषण और अतिक्रमण ने झील का क्षेत्रफल घटाकर लगभग 120 एकड़ तक सीमित कर दिया है। इस जलाशय में फॉस्फेट और नाइट्रोजन की बढ़ती मात्रा समस्या को और गंभीर बना रही है।

हर साल करोड़ों रुपये कहां जाते हैं?
समस्या यह है कि हर साल करोड़ों रुपए की स्वीकृति तो होती है, लेकिन उनका सही और प्रभावी उपयोग नहीं हो पाता। आरोप लगे हैं कि भ्रष्टाचार और प्रशासनिक लापरवाही के चलते पैसे का बड़ा हिस्सा जमीनी स्तर पर काम में नहीं आता। सफाई और विकास कार्य बार-बार अधूरे रह जाते हैं। जलकुंभी हटाने के लिए बनाए गए कई योजनाएं धरातल पर प्रभावी रूप से लागू नहीं हो पाईं।

हाल ही में मुख्यमंत्री नगरोत्थान योजना के तहत 9.88 करोड़ रुपए की राशि स्वीकृत की गई है, जिसमें जलकुंभी हटाने, सफाई और जलाशय के सौंदर्यीकरण का कार्य शामिल है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह नया बजट पूर्व की तरह सिर्फ दिखावा साबित होगा या वास्तविक बदलाव ला पाएगा? पिछले दो दशकों में जो भी पैसा खर्च हुआ, उससे स्थिति में वैसा सुधार नहीं हुआ जैसा अपेक्षित था।





लंबे समय से चली आ रही लापरवाही का परिणाम
दलपत सागर की समस्या केवल प्रदूषण या जलकुंभी की नहीं, बल्कि वर्षों से चली आ रही प्रशासनिक लापरवाही, भ्रष्टाचार और योजनाओं के अधूरे क्रियान्वयन की है। अगर अगली बार भी सिर्फ बजट की घोषणा ही की गई और प्रभावी निगरानी न हुई तो लाखों-करोड़ों खर्च करने के बाद भी दलपत सागर की हालत और खराब होती जाएगी।