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1 लाइन का ऑर्डर और वह भी… मद्रास हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज पर भड़का सुप्रीम कोर्ट, पढ़ाया न्याय का पाठ

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SC ने मद्रास HC के एक आदेश पर कहा- अनुचित कृत्यों का समर्थन नहीं किया जा सकता..!

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया है, क्योंकि फैसला सुनाने वाले न्यायाधीश ने पद छोड़ने के बाद पांच महीने की अवधि के लिए मामले की फाइलों को यह कहते हुए अपने पास रखा था कि वह अनुचितता के ऐसे कृत्यों का समर्थन नहीं कर सकते. न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा, ‘लॉर्ड हेवर्ट ने सौ साल पहले कहा था कि ‘न्याय न केवल किया जाना चाहिए, बल्कि होते हुए दिखना भी चाहिए.’ इस मामले में जो किया गया है वह लॉर्ड हेवार्ट ने जो कहा था उसके विपरीत है.’

पीठ ने कहा, ‘हम अनुचित कृत्यों का समर्थन नहीं कर सकते हैं और इसलिए, हमारे विचार में इस न्यायालय के लिए एकमात्र विकल्प फैसले को रद्द करना और नए फैसले के लिए मामलों को उच्च न्यायालय में भेजना है.’ शीर्ष अदालत ने पाया कि आदेश देने वाले न्यायाधीश ने अपनी सेवानिवृत्ति के बाद पांच महीने की अवधि के लिए मामले की फाइलों को अपने पास रखा था और इस अवधि के बीतने के बाद मामले में एक तर्कसंगत आदेश उच्च न्यायालय की वेबसाइट पर प्रकाशित किया गया था.

पीठ ने 13 फरवरी को पारित एक आदेश में कहा कि यह स्पष्ट है कि न्यायाधीश के पद छोड़ने के बाद भी, उन्होंने कारण बताए और निर्णय तैयार किया. हमारे अनुसार पद छोड़ने के बाद 5 महीने की अवधि के लिए किसी मामले की फाइल को अपने पास रखना न्यायाधीश की ओर से घोर अनुचितता का कार्य है. इस मामले में जो किया गया है, हम उसे स्वीकार नहीं कर सकते हैं.

चुनौती के तहत फैसले में मद्रास उच्च न्यायालय ने एक आरोपपत्र को रद्द कर दिया था और एक आपराधिक मामले में कुछ आरोपियों को आरोपमुक्त कर दिया था. न्यायाधीश ने अपनी सेवानिवृत्ति से पांच सप्ताह पहले आदेश का ऑपरेटिव भाग सुनाया, हालांकि जब उन्होंने कार्यालय छोड़ दिया तो तर्कसंगत भाग जारी नहीं किया गया था.

ऑपरेटिव पार्ट 17 अप्रैल, 2017 को सुनाया गया था. हाईकोर्ट के जज के लिए तर्कसंगत निर्णय जारी करने के लिए उनके पद छोड़ने की तारीख तक पांच सप्ताह उपलब्ध थे. हालाँकि, 250 से अधिक पृष्ठों का विस्तृत निर्णय उस तारीख से 5 महीने की समाप्ति के बाद सामने आया है, जिस दिन जज ने कार्यालय छोड़ दिया था. पीठ ने कहा, ‘यह स्पष्ट है कि जज के कार्यालय छोड़ने के बाद भी , उन्होंने कारण बताए और निर्णय तैयार किया. उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए सीबीआई ने शीर्ष अदालत का रुख किया.

शीर्ष अदालत ने मामले की योग्यता के आधार पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया और मामले को नए सिरे से तय करने के लिए उच्च न्यायालय को भेज दिया. यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि हमने विवाद के गुण-दोष पर कोई निर्णय नहीं दिया है और सभी मुद्दों को उच्च न्यायालय द्वारा तय किए जाने के लिए खुला छोड़ दिया गया है. यदि बाद में कोई घटना होती है, तो पक्ष कानून के अनुसार इसे उच्च न्यायालय के संज्ञान में लाने के लिए स्वतंत्र हैं. इसके तहत अपीलें आंशिक रूप से स्वीकार की जाती हैं.

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