छत्तीसगढ़धर्म-कला -संस्कृति

Kalewa छत्तीसगढ़ के कलेवा बोईर रोटी

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Kalewa छत्तीसगढ़ के कलेवा बोईर रोटी

छत्तीसगढ़ के खानपान म रोटी-पीठा के बाते अलग हे। चाउर पिसान के अंगाकर, पानरोटी, चीला, मुठिया, फरा बनथें। दिगर जिनिस दार के तेलहा रोटी, बरा, सोहांरी, भजिया, खुरमी , ठेठरी अउ सुक्खा रोटी मं चुनीरोटी हमर देहाती खानपान के संस्करीति ल पोठ करथें। अइसनेच ढंग ले हमर गांव-देहात के बड़ा नामी खट्टा-मीठा फर बोईर ले बने नान-नान पोरी रोटी बनाय जाथे। जेला ‘बोईर रोटीÓ कहे जाथय।
बोईररोटी ल अच्छा कड़-कड़ाय घाम मं सुखाय जाथे। सुक्खा बोईर ल एक तय मात्रा म खलबट्टा (ओखली) मं कूटे जाथे। ताहन वोकर बीजा याने गुठलू ल चन्नी म छाने देथें। फेर, नान्हे छेदा वाले चन्नी म दू-तीन घंव छान के आरुग बुकनी ल अलग करे जाथे। इही बुकनी म सुवाद मुताबिक नून, मिरचा बुकनी अउ तिली दाना मिलाय जाथे। मीठ खाय के सउंख हे ते गुड़-सक्कर डारे जा सकथय।

सब जिनिस के निस्चित मात्रा मिलाय के बाद सफ्फा पानी म साने जाथे। बढिय़ा लस-लसावत ले साने के बाद सुपा या पररा म नान-नान बरा, मुठिया या भजिया असन बनाय जाथे। फेर, इहीं ल अच्छा चमचमात घाम म सुखाय जाथे। दू-तीन दिन ले सुखाय ये बोईर रोटी ह बड़ा बढिय़ा बनथे। ऐहा खराब घलो नइ होवय। अच्छा चमचम ले ढक्कन लगे डब्बा म ऐला रखे जाथे। हवा-पानी ले ऐ दूरिहा रखे बर चाही।
बोईररोटी ल जब मन चाहे तब सबो उमर के लोगन ऐकर सुवाद ले सकथे। ऐकर संग अउ अलग से कोनों जिनिस खाय के जरूरत नइ परय। वइसे बोईररोटी ल असाढ़ के पानी के गिरे ले या कोअंर मवसम म खाय म बड़ा मजा आथे। बोईररोटी ह पाचन अउ मुंह के सुवाद बर बड़ा बढिय़ा होथय।
बोईररोटी ह न सिरिफ खाय के जिंनिस आय, भलुक हमर लोक संस्करीति के अंतरगत देहाती खानपान, रोटी-पीठा अउ ब्यंजन के रूप म हमर एक धरोहर। जेकर संरक्छन घलो बहुत जरूरी हे।
बोईररोटी ल जब मन चाहे तब सबो उमर के लोगन ऐकर सुवाद ले सकथे। ऐकर संग अउ अलग से कोनों जिनिस खाय के जरूरत नइ परय। वइसे बोईररोटी ल असाढ़ के पानी के गिरे ले या कोअंर मवसम म खाय म बड़ा मजा आथे। बोईररोटी ह पाचन अउ मुंह के सुवाद बर बड़ा बढिय़ा होथय।
बोईररोटी ह न सिरिफ खाय के जिंनिस आय, भलुक हमर लोक संस्करीति के अंतरगत देहाती खानपान, रोटी-पीठा अउ ब्यंजन के रूप म हमर एक धरोहर। जेकर संरक्छन घलो बहुत जरूरी हे।

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