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बस्तर प्रसिद्ध चापड़ा चटनी बड़े ही चाव से यहां खाई जाती हैं ,,, जानिए कैसे बनती है चापड़ा चटनी

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प्रसिद्ध है बस्तर की चीटियों की स्वादिष्ट चापड़ा चटनी

छत्तीसगढ़ का बस्तर अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए पूरे देश में जाना जाता है. यहां के आदिवासियों की संस्कृति, रीति -रिवाज और खान -पान बाकी राज्यों की तुलना में काफी अलग है और खासकर बस्तर के डिश के हजारों लोग दीवाने हैं, देश के साथ-साथ विदेशों से भी बस्तर घूमने आने वाले पर्यटक बस्तर के डिश का स्वाद जरूर चखते हैं और इनमें से एक बस्तर का खास व्यंजन है चापड़ा चटनी. आपने धनिया, पुदीना या टमाटर की चटनी का स्वाद चखा होगा, लेकिन क्या लाल चींटियों की चटनी के बारे में सुना है यह आपको अटपटी लग सकती है, लेकिन यह सच है.

यह चटनी आपको और कहीं नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ के बस्तर में मिलेगी. यहां लाल चींटियों की चटनी को आदिवासी बड़े चाव से खाते हैं, बस्तर में रहने वाले आदिवासी लाल रंग की चीटियों को पेड़ों से जमा करके चटनी बनाते हैं इसे स्थानीय बोलचाल में चापड़ा चटनी कहते हैं, आप बस्तर के किसी पांरम्परिक हाट साप्ताहिक बाजार में हैं तो पत्तों के दोने में लाल चींटियांबेचतीं आदिवासी महिलाएं आसानी से आपको दिख जायेंगी. आदिवासी अपने खानपान में इस चटनी का इस्तेमाल सदियों से करते आ रहे हैं, यह चटनी मेडिसिन का भी काम करती है.

आदिवासियों का मानना है कि चापड़ा स्वास्थ के लिए बहुत फायदेमंद होता है, इन चीटियों में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन के साथ ही आयरन और कैल्सियम पाया जाता है, इसके सेवन से मलेरिया, पीलिया और अन्य जलजनित बीमारियों से आराम मिलता है, यही नहीं ग्रामीण अंचलों में रहने वाले आदिवासी तेज बुखार होने पर इस चींटी के झुंड में पंहुच जाते हैं और इन चींटियों के डंक से बुखार भी धीरे- धीरे उतरने लगता है, इतिहासकारों के मुताबिक मार्च और अप्रैल का महीना आते ही ये लाल चींटियां जंगलों में आम के पेड़, सरगी और सालवन के पेड़ों के पत्तों मे बड़े पैमाने पर छत्ता बनाती हैं, फिर ग्रामीण इन इन चींटियों को जमा कर लेते हैं, अगर इसकी चटनी बनानी हो तो उसे सिलबट्टे पर पीस कर उसमें स्वाद के अनुसार नमक और मिर्च मिलाते हैं, इससे स्वाद चटपटा हो जाता है और फिर बड़े चाव से खाते हैं, वर्तमान में कुछ आदिवासी इस चटनी में अदरक व लहसुन भी मिलाने लगे हैं जिससे इसकी स्वाद दोगुनी बढ़ जाती है.

फिर इसे चांवल के साथ में परोसा जाता है ।

आदिवासी इसे चटनी से मौसमी बिमारियों के अलावा बुखार, पीलिया का भी इलाज करते हैं।

कहां मिलता है चापड़ा:

जगलों में साल वृक्ष के पेड़ों के पत्तों में यह चींटी अपना अंडा देती है और यह झंड के रूप में जंगलों में पायी जाती है। साल की पत्तियों में चींटी अपने लार से पत्तों को आपस में चिपका कर अपना घर बनाती है जिसे चापड़ा गुड़ा यानि चापड़ा का घर कहते हैं। कहते हैं अगर यह चींटी आपको लगातार दो चार बार काट ले तो बुखार उतर जाता है और बुखार न भी हो तो उसे बुखार नहीं चढ़ता । कारण है यह बुखार फैलाने वाले बैक्टिरिया या वायरस को चुस लेती है। जो लोग चटनी खाने से परहेज करते हैं उसे इस चींटी से कटवाना ही उनके बिमारियों का अंत कर सकता है।

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