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नाउम्मीद हो चुके थे जिस बेटे के लिए उसी के जिंदा होने की खबर मिलने से मां बाप के छलके ऑंसू!

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10-सितम्बर,2020

बिलासपुर-[सवितर्क न्यूज़ न्यूज़] राज्य मानसिक चिकित्सालय, सेंदरी के स्टॉफ की समर्पित कार्यशैली के चलते मनोरोगी तो ठीक हो ही रहे हैं, साथ ही वह खो चुके अपने परिजनों से मिल रहे हैं। पहले पश्चिम बंगाल की एक महिला को उसके परिजनों से मिलाने के बाद यहां के डॉक्टरों ने फिर एक 17 वर्षीय किशोर के परिजनों को ढूंढ निकाला। किशोर के माता पिता अपने बेटे को देखते ही फफक कर रो पड़े। उनकी खुशी का ठिकाना भी नहीं रहा। उन्होंने उससे वीडियो कॉलिंग में बात की और कहा कि वह यह मानकर जी रहे थे को उनका बेटा अब इस दुनिया में ही नहीं है, लेकिन भगवान ने उसे फिर से लौटा दिया है। उन्होंने अस्पताल प्रबंधन और वहां के स्टॉफ को ढेरसारी दुआएं दीं। अस्पताल के चिकित्सा मनोवैज्ञानिक डॉ. दिनेश कुमार लहरी ने बताया कि रायपुर स्थित डॉ. भीमराव आंम्बेडकर चिकित्सालय से 17 वर्षीय किशोर को मानसिक बीमारी होने के चलते राज्य मानसिक चिकित्सालय सेंदरी भेजा गया था। किशोर को आंम्बेडकर अस्पताल में इस वर्ष 26 फरवरी को भर्ती कराया गया था। वहां रेफर होने के बाद 16 मई को वह सेंदरी मेंटल हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। अस्पताल के चिकित्साधीक्षक डॉ. बीआर नंदा ने किशोर के इलाज को सभी डॉक्टरों से चर्चा की और उसके इलाज की जिम्मेदारी मनोरोग चिकित्सक डॉ. आशुतोष तिवरी ने ली। डॉ. तिवारी के इलाज से किशोर जल्द ही ठीक होने लगा, लेकिन वह कुछ भी बोल या अपने बारे में बता नहीं पा रहा था। डॉ. तिवारी ने उसकी काउंसलिंग व देखरेख की जिम्मेदारी डॉ. दिनेशकुमार लहरी को दी। डॉ. लहरी की माने तो उन्होंने किशोर को करण के नाम से बुलाना शुरू किया।चार महीनों तक व कुछ भी बोल नहीं पाया। लगभग पांच महीने के अथक प्रयास के बाद किशोर ने दो दिन पहले डॉ. लहरी को एक मोबाइल नंबर बताया। उन्होंने उस नंबर पर कॉल किया तो वह बिहार के लखीसराय जिला अंतर्गत रहने वाले मांझी परिवार के यहां लगा। करण के बारे में पूछने पर उन्होंने कोई जानकारी होने से मना कर दिया।इसके बाद जब किशोर ने अपना असली नाम बताया और उसके बारे में उनसे पूछा गया तो परिजन फफक कर रो पड़े। भगवान ने दोबारा लौटाया उनके बेटे को करण के माता-पिता ने बताया उनके दो बेटे व चार बेटियों में करण सबसे छोटा था। दो साल पहले वह घर से बिना बताए कहीं चला गया था। वह मानसिक रूप से कमजोर था। काफी खोजने के बाद भी जब उसका कहीं पता नहीं लगा तो वह लोग यह मान बैठे थे कि अब उनका बेटा इस दुनिया में ही नहीं है। लेकिन जब डॉ. दिनेश ने उन्हें बताया कि उनका बेटा उनके पास सही सलामत है तो उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ और वह खुशी के मारे रो पड़े। उन्होंने अपने खोए हुए बेटे का आधार कार्ड भी दिया, जिससे करण की पहचान हुई। वीडियो कॉलिंग में करण को देखने उमड़ पड़ा पूरा गांव डॉ. दिनेश ने बुधवार सुबह करण के पिता को वीडियो कॉल किया। वीडियो कॉल में करण को देखने के लिए उसके माता-पिता भाई बहन सहित पड़ोस व गांव के बड़ी संख्या में लोग पहुंचे। सभी ने उसे बात करता देख अस्पताल के स्टॉफ का शुक्रिया अदा किया। खुशी के मारे सभी की आखें नम हो रहीं थी। गांव के मुखिया ने कहा कि वह जल्द ही किराये का वाहन करके बिलासपुर करण को लेने पहुंचेंगे। डॉ. दिनेश का कहना है कि पांच महीनों में पूरे अस्पताल स्टॉफ का लगाव करण से हो गया था। उसके परिजन जब आएंगे तो वह खुशी-खुशी उसे विदा करेंगे।

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