छत्तीसगढ़धर्म-कला -संस्कृति

दंतेवाड़ा का दंतेश्वरी मंदिर, छह भुजाओं वाली है माता की मूर्ति

Advertisement

दंतेवाड़ा का दंतेश्वरी मंदिर, छह भुजाओं वाली है माता की मूर्ति

मंदिर के गर्भगृह – दंतेवाड़ा के प्रसिद्ध दंतेश्वरी मंदिर के गर्भगृह में
दंतेश्वरी देवी विराजमान है। शंखनी एवं डंकिनी नदी के तट पर स्थित – मां दंतेश्वरी माता का जो मंदिर है वह शंखनी एवं डंकिनी नदी के तट पर बसा हुआ है।24 स्तंभों पर खड़ा है यह मंदिर – मां दंतेश्वरी माता का जो मंदिर है वह 24 स्तंभों पर खड़ा हुआ है।सागौन की लकड़ी से बना है माता का मंदिर – दंतेवाड़ा के प्रसिद्ध मां दंतेश्वरी माता का जो मंदिर है वह सागौन पेड़ की लकड़ी से बना हुआ है।जिस पर ओडिशा के कलाकारों ने आकर्षक नक्काशी की है।51 शक्तिपीठ – देवी पुराण के अनुसार माता सती के शरीर को 51 भागों में विभक्त कर दिया था जिस जगह पर माता सती के अंग गिरे आज वहां शक्ति पीठ बन गया है।दंतेवाड़ा में माता सती का दांत गिरा था इस लिए इस जगह को 52 शक्ति पीठ में माना जाता है।इस जगह का नाम दंतेवाड़ा कैसे पड़ा – माना जाता है कि इस जगह पर माता का दांत गिरा था इस लिए इस जगह का नाम दंतेवाड़ा और माता का नाम दंतेश्वरी पड़ा।छह भुजाओं वाली देवी – मां दंतेश्वरी देवी की मूर्ति है वह छह भुजाओं वाली है।राजा की कुलदेवी -मां दंतेश्वरी देवी को वारंगल के राजाओं की कुलदेवी थी।संगमरमर से बनी मूर्ति – मां दंतेश्वरी की मूर्ति है वह काले संगमरमर से निर्मित सिंहवाहिनी है।धोती पहनकर प्रवेश करना अनिवार्य है – मां दंतेश्वरी मंदिर के अंदर प्रवेश करने के लिए सबसे पहले धोती पहनकर ही मां दंतेश्वरी के दर्शन कर सकते हैं।गरुड़ स्तम्भ की मान्यता – माना जाता है जो श्रद्धालु इस गरुड़ स्तम्भ को अपने दोनो हाथो को मोड़कर गरुड़ स्तम्भ को छू लेता है उसकी मनोकामना मां दंतेश्वरी माता जी पूरी कर देती है।बलि की प्रथा – पहले इस मंदिर में नर बलि की प्रथा थी पहले राजा लोग माता जी को प्रसन्न करने के लिए नर की बलि दिया जाता था फिर यह धीरे धीरे बंद हो गई लेकिन बलि की प्रथा समाप्त नहीं हुई अभी भी हर रोज मंदिर परिसर में मुर्गी की बलि दी जाती है।- मां दंतेश्वरी मंदिर के पास में ही भुनेश्वरी देवी का भी मंदिर है। और उस मंदिर के पास में बहुत ही प्राचीन मूर्ति भी है।- दंतेश्वरी मंदिर से कुछ दूर मां दंतेश्वरी देवी के चरण चिन्ह है जिसके दर्शन करने के लिए श्रद्धालु यहां आते हैं।- शंखनी एवं डंखनी नदी के किनारे पर मां
दंतेश्वरी माता के पद चिन्ह एक चट्टान पर बना है जिसके दर्शन से हर मनोकामना पूर्ण होती है।- दंतेश्वरी मंदिर के बाहर में ही बजरंग जी की विशाल प्रतिमा दिखाई देती है और रास्ते से ही मूर्ति दिखाई देती है और रास्ते में ही विष्णु जी अपने शेष सैइया में विराजमान हैं और कृष्ण जी कदम के पेड़ में बैठे हुए हैं और शंकर जी की प्रतिमा दिखाई पड़ती हैं।- शंखनी एवं डंखनी नदी के पास ही पशुओ के लिए गौ शाला का निर्माण किया गया है।- दंतेश्वरी मंदिर से कुछ में शंखनी एवं डंकिनी नदी के तट पर स्थित एक पेड़ के पास ही मन्नत के धागे को बांधते है।- दंतेश्वरी मंदिर से कुछ दूर पर भैरव बाबा का भी मंदिर है मंदिर में बहुत ही प्राचीन काल के शिवलिंग विराजमान है।- दंतेश्वरी मंदिर में नवरात्रि महोत्सव में भक्तो की अधिक कतार दिखाई देती है सभी मां दंतेश्वरी के दर्शन करने के लिए आते हैं।- कहा जाता है कि एक बार जब अन्नमदेव जब मुगलों से पराजित होकर जंगल में गए तो वह रास्ता भटक गए थे तब कुल देवी ने उन्हें दर्शन देकर कहा कि माघ पूर्णिमा के मौके पर वे घोड़े में सवार होकर विजय यात्रा प्रारंभ करें. माता ने कहा कि वे जहां तक जाएंगे वहां तक उनका राज्य स्थापत्य होगाराजा ने वारंगल के गोदावरी के तट से उत्तर की ओर अपनी यात्रा प्रारंभ की . राजा अपने पीछे चली आ रही माता का अनुमान उनके पायल के घुंघरुओं से कर रहे थे.लेकिन राजिम के त्रिवेणी पर पैरी नदी तट की रेत पर देवी के पैरों की घुंघरुओं की आवाज रेत में दब जाने के कारण बंद हो गई तो राजा ने पीछे मुड़कर देखा तो देवी के मना करने के बाद भी राजा नहीं माने. वे बहुत दुखी हुए. देवी ने कहा कि ये वस्त्र लो और जितनी भी भूमि इस वस्त्र ढक जाएगी वो तुम्हारे राज्य का हिस्सा होगा राजा ने वस्त्र फैलाना शुरु किया और जो क्षेत्र इस वस्त्र से ढका वो बस्तर कहलाया कुछ समय के पश्चात मां दंतेश्वरी ने राजा के स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि मैं दंतेवाड़ा के शंखिनी -डंकिनी नदी के संगम पर स्थापित हूं . कहा जाता है कि मां दंतेश्वरी की प्रतिमा प्राकट्य मूर्ति है शेष मंदिर का निर्माण कालांतर में राजा द्वारा निर्मित किया गया।

Related Articles

Back to top button