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खुफिया विफलता थी, हम अनजान थे कि दुश्मन सीमा के ठीक पार बैठा है : रिटा. ले. कर्नल कुलविंदर सिंह…!

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खुफिया विफलता थी, हम अनजान थे कि दुश्मन सीमा के ठीक पार बैठा है : रिटा. ले. कर्नल कुलविंदर सिंह…!

नई दिल्ली : सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट कर्नल कुलविंदर सिंह ने अपनी किताब ‘गन्स ऑफ लोंगेवाला’ में अपने युद्ध अनुभव साझा किए हैं. जेडब्ल्यू मैरियट एयरोसिटी में ‘गन्स ऑफ लोंगेवाला’ की मीडिया ब्रीफ मेंयुद्ध अनुभवी सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट कर्नल कुलविंदर सिंह ने युद्ध के महत्वपूर्ण पहलुओं और तोपखाने व पैदल सेना की महत्वपूर्ण भूमिका पर चर्चा की. उन्होंने कहा, ‘खुफिया विफलता थी क्योंकि दुश्मन हमारी सीमा के ठीक पार बैठा था और हमें कोई सुराग नहीं था.’ पढ़िए पूरा इंटरव्यू.

सवाल : 1971 के ऐतिहासिक लोंगेवाला युद्ध के नायक होने के नाते अब जब आप पीछे मुड़कर देखते हैं, तो आपके दिमाग में क्या आता है?

जवाब : जो बात मन में आती है वह यह है कि भारतीय सेना बहुत मजबूत है और हमारे बीच सहयोग बहुत अच्छा है. हम किसी भी धर्म में विश्वास नहीं रखते. हमारे लिए राष्ट्र हमेशा पहले आता है. सभी युद्धों में हमारी सफलता का प्रमुख कारण सभी सेनाओं के बीच सहयोग है.

सवाल : इस तथ्य के बावजूद कि पाकिस्तानी सेना संख्यात्मक रूप से हमसे अधिक मजबूत थी, हमने अपने सैनिकों की बहादुरी के कारण तीन दिनों में युद्ध जीत लिया. आप इसे कैसे याद करना चाहते हैं और इतिहास को 1971 के युद्ध और आर्टिलरी और 185 लाइट रेजिमेंट की भूमिका को कैसे देखना चाहिए?


जवाब : पाकिस्तान बहुत बड़ी योजना लेकर आया था लेकिन उसमें बहुत सारी खामियां थीं. सबसे पहले बख्तरबंद ब्रिगेड जिसमें टैंक और वाहन आदि शामिल हैं, तब तक आगे नहीं बढ़ते जब तक उनके पास हवाई कवर न हो. तो, उन्होंने जो बड़ी गलती की वह यह थी कि वे अति-आत्मविश्वास में थे. जिस हवाई कवर की आवश्यकता थी, उससे पहले उन्होंने सोचा कि वे हमारी पोस्टों को पार करके जैसलमेर पहुंच जाएंगे. लेकिन, दुर्भाग्य से उनके टैंकों और वाहनों पर हमारी वायु सेना की मार पड़ रही थी और फिर वे रात में यह सोचकर एक कंटीले तार से टकरा गए कि यह एक बारूदी सुरंग है. लेकिन इस बीच हम उन्हें प्रतिक्रिया देने में बहुत तेज थे. और मुझे आदेश मिला और हम समय के विरुद्ध दौड़ लगा रहे थे. और फिर मैंने अपरंपरागत तरीके से तोपखानों की तैनात की. और इससे पहले कि दुश्मन को पता चले, हम उन पर बमबारी कर रहे थे. इससे वे आश्चर्यचकित रह गए क्योंकि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि तोपखाना रेजिमेंट उस क्षेत्र में थी. इसलिए, भारतीय वायु सेना के आने से पहले हम उन पर भारी बमबारी कर रहे थे.

तो, फिर वायु सेना आई और उन्हें मारना शुरू कर दिया और जब वे ईंधन भरने के लिए लौटे, तो हमने (आर्टिलरी रेजिमेंट) पर कब्जा कर लिया और हम उन्हें मार रहे थे. इसलिए तोपखाना रेजीमेंट लगातार वहां मौजूद था, दुश्मन पर हमला कर रहा था और युद्ध पर हावी हो रहा था.

सवाल : सच तो यह है कि 1971 के लोंगेवाला युद्ध के बारे में बात करते समय तोपखाने और पैदल सेना रेजिमेंट की भूमिका के बारे में बात क्यों नहीं की जाती है. इसमें इतना समय क्यों लगा?

जवाब : ऐसा इसलिए है क्योंकि वहां 12 इंफेंट्री डिवीजन थे और मैं उसका हिस्सा था और उनकी भूमिका आक्रामक होने की थी. हम रहीमयार खान की ओर आक्रामक हो रहे थे और तनोट (तनोट मंदिर के पास) बैठे थे. इसलिए हम आगे बढ़ रहे थे और हमें इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि पाकिस्तान हमला करने वाला है. मैं कहूंगा कि खुफिया विफलता थी क्योंकि दुश्मन हमारी सीमा पर बैठा था और हमें कोई सुराग नहीं था.

इसके बाद जब दुश्मन आया तो हमने तुरंत प्रतिक्रिया दी. हमने खुद को संभाला और उन्हें नष्ट कर दिया. वे हार गए और फिर विराम लग गया. इस बीच वे जानना चाहते थे कि क्या गलत हुआ और क्या सही हुआ. अंततः हम विजयी हुए और इसलिए कोई भी खामियों और बुद्धिमत्ता की कमी के बारे में बात नहीं करना चाहता था.

आख़िरकार जब बॉर्डर फिल्म आई और सिनेमाघरों में हिट हुई तो हर कोई इस युद्ध के बारे में बात करने लगा. बॉर्डर फिल्म में कई चीजों की कमी थी क्योंकि वे हमारी पैदल सेना के खिलाफ भारी बाधाओं को दिखाना चाहते थे क्योंकि अंत में यह सिर्फ एक ऐसी फिल्म है जो केवल बॉक्स ऑफिस कलेक्शन की परवाह करती है. लेकिन मैं जे पी दत्ता की भी सराहना करना चाहूंगा जो बॉर्डर के डायरेक्टर थे जिन्होंने कई महत्वपूर्ण चीजें छूटने के बावजूद शानदार काम किया. लेकिन जहां तक देश और भारतीय सेना का सवाल है तो हमें तथ्यों को जानना चाहिए.

सवाल : ऐसे समय में जब भूराजनीतिक बदलाव हो रहे हैं और युद्ध की पूरी रणनीति भी विकसित हो रही है, आप भारत को कहां देखते हैं?

उत्तर : भारत इस समय बहुत मजबूत स्थिति में है. हमारी सेना आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित हो चुकी है और हमारी वायु सेना भी नई तकनीकों के साथ नए विमान पाकर अच्छा प्रदर्शन कर रही है. भारतीय सेना का हौसला बहुत ऊंचा है. कुछ दिन पहले मैंने पूर्व नौसेना प्रमुख से बात की थी, जिन्होंने मुझे बताया था कि भारतीय नौसेना कैसे बदल रही है और मजबूत हो रही है. व्यक्तिगत तौर पर मुझे लगता है कि पाकिस्तान में हमला करने की हिम्मत नहीं है. वे यहां-वहां छोटे-मोटे खेल तो खेल सकते हैं, लेकिन पूर्ण युद्ध नहीं कर सकते.

सवाल : आप भारत-पाकिस्तान संबंधों को कहां देखते हैं?

जवाब : भारत पाकिस्तान के रिश्ते नफरत पर आधारित हैं. अब जो नई पीढ़ी आ रही है, उसे लगता है कि बंटवारा गलत था. मैं युवाओं से भी मिलता हूं और महसूस करता हूं कि उनकी भी यही राय है. अगर हम साथ होते तो हम और अधिक मजबूत होते. इसलिए समय की मांग है कि धर्म को भूलकर पहले राष्ट्र के बारे में सोचा जाए.

सवाल : अग्निपथ योजना पर आपके क्या विचार हैं?

जवाब : कुछ अच्छे प्वाइंट और कुछ कमजोर प्वाइंट हैं. अच्छी बात यह है कि एक बार प्रशिक्षण के बाद कुछ लोगों को बरकरार रखा जाता है और कुछ को छोड़ दिया जाता है, लेकिन अंततः जो बाहर आते हैं वे भी अच्छी तरह से प्रशिक्षित और अनुशासित होते हैं. न केवल सरकारी क्षेत्र बल्कि निजी उद्योग में भी, ऐसे अनुशासित लोग संपत्ति हैं और वे ऐसे लोगों को काम पर रखते हैं. नकारात्मक बात यह है कि जिन लोगों को काम पर नहीं रखा जाता, निराश हो जाएं और हो सकता है कि उनके लिए पर्याप्त धन न हो.

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