कचरा कबाड़ उठाकर जीवन यापन कर रहे नाबालिग अनाथों की सुध लेने वाला कोई नहीं,,,,, महिला एवं बाल विकास विभाग के अस्तित्व पर उठे सवाल
जांजगीर-चांपा : शहर और आसपास के क्षेत्र में दर्जनों अनाथ बच्चे हैं जो कचरा, कबाड़ उठाकर अपना जीवन यापन कर रहे हैं. इन नाबालिग अनाथों की देखभाल करने वाला कोई नहीं है। और गलत संगति के कारण वे नशे के आदी भी हो जाते हैं।
इतना चाह कर भी वे पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं। इसलिए भविष्य में अपराध जगत में प्रवेश कर जानने की संभावना बहुत अधिक होती है।
अभी कुछ दिन पहले एक नाबालिग लड़की लाइन्स चौक में कबाड़ खोज रही थी। कबाड़ निकालने की कोशिश में उसे अचानक मिर्गी का दौरा पड़ा और वह बेहोश हो गई। जहां वह गिरी वहां मोबाइल कवर बेचने वाली एक दुकान है।
सुबह वह उस जगह पर दुकान लगाने आया था और नाबालिग लड़की को बेहोश देखकर उसके हाथ-पैर भी फूल गए। उसने साहसपूर्वक लड़की के माथे पर पानी छिड़का और उसे होश में लाया और कुछ देर बाद जब उसे होश आया तो लड़की ने बताया कि उसके माता-पिता नहीं हैं, वह चंपा रेलवे स्टेशन के पास रहती है। इस तरह वह कचरे से कबाड़ बेचकर अपना जीवन यापन करता है।
क्या ऐसे अनाथ और असहाय लोगों के लिए ही महिला एवं बाल विकास नहीं किया जाता है? क्या महिला एवं बाल विकास केवल फाइलों में और आंगनबाडी केंद्रों के संचालन तक ही मौजूद है? शहर में दर्जनों ऐसे विक्षिप्त महिलाएं और पुरुष हैं जिन्हें समाज कल्याण विभाग के सहयोग की जरूरत है, जिन्हें उचित इलाज और देखभाल की जरूरत है. क्या सरकारी प्रशासन की यह जिम्मेदारी नहीं है कि ऐसे लोगों को सेंदरी में चलाए जा रहे मानसिक अस्पताल में भर्ती कराकर ऐसे लोगों का समुचित इलाज किया जाए। .
महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारी चार पहिया एयर कंडीशन में अपने कार्यालय और फाइलों तक ही सीमित हैं। उन्हें जमीनी हकीकत जानने के लिए रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, कूड़े के ढेर के पास भी जाना चाहिए ताकि अनाथ, विक्षिप्त, असहाय बेघर लोग जिन्हें महिला एवं बाल विकास की योजनाओं के तहत सहयोग की आवश्यकता है.
अनाथ, बेसहारा, बेघरों के पुनर्वास के लिए सरकारी प्रशासन को गंभीरता से काम करने की जरूरत है। इस कड़ाके की ठंड में युवा कवि मुकेश सिंघानिया की ये पंक्तियाँ प्रासंगिक हैं “केवल तन और जेब पर कुछ बोझ बेवजह बढ़ जाता है
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