मुख पृष्ठराजनीतिराष्ट्रीय

‘ओबीसी वोटरों की गोलबंदी: बीजेपी का पलड़ा भारी या विपक्ष मारेगा बाज़ी..!

Advertisement

ओबीसी वोटरों की गोलबंदी: बीजेपी का पलड़ा भारी या विपक्ष मारेगा बाज़ी..!
नई दिल्ली:-लोकसभा चुनाव 2024 में जीत हासिल करने के लिए ओबीसी वर्ग के वोटों पर कब्जे की जंग लड़ी जा रही है। बीजेपी और कांग्रेस दोनों की कोशिश है कि लगभग 52 प्रतिशत आबादी वाले इस वोट बैंक के बड़े हिस्से को अपने पाले में किया जाए। बीजेपी जहां चुनाव प्रचार के दौरान ओबीसी तबके के लिए किए गए अपने कामों को गिना रही है तो वहीं कांग्रेस लगातार जातिगत जनगणना की मांग कर रही है।
लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वे के मुताबिक, 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सिर्फ 22 प्रतिशत ओबीसी मतदाताओं ने वोट दिया था। जबकि 2014 में यह आंकड़ा बढ़कर 34 प्रतिशत हो गया था। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को ओबीसी तबके के 44 प्रतिशत वोट मिले थे। निश्चित रूप से 10 साल में बीजेपी ने इस तबके के बीच अपनी सक्रियता बढ़ाई और वह 2009 के मुकाबले इस समुदाय के 20 प्रतिशत ज्यादा वोट हासिल करने में कामयाब रही।
इन तीनों ही चुनावों में बीजेपी की सीटों की संख्या में भी जबरदस्त इजाफा हुआ। 2009 के लोकसभा चुनाव में उसे 116 सीटें मिली थी लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में यह आंकड़ा बढ़कर 282 और 2019 के चुनाव में 303 हो गया।
लोअर ओबीसी में बढ़ा बीजेपी का आधार
लोकनीति-सीएसडीएस के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि ओबीसी तबके में जो प्रभावशाली जातियां हैं (यानी अपर ओबीसी), उनके मुकाबले कम प्रभावशाली जातियों (लोअर ओबीसी) का समर्थन बीजेपी को ज्यादा मिलता है। कांग्रेस के मुकाबले तो यह काफी ज्यादा है।
सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक साल 2009 के लोकसभा चुनाव में अपर ओबीसी का 22 प्रतिशत वोट बीजेपी को मिला जबकि लोअर ओबीसी में भी यह आंकड़ा इतना ही था।
लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में अपर ओबीसी का 30 प्रतिशत वोट बीजेपी को मिला जबकि लोअर ओबीसी तबके के 42 प्रतिशत मतदाताओं ने बीजेपी को अपना समर्थन दिया। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में अपर ओबीसी तबके के 41 प्रतिशत मतदाता बीजेपी के साथ थे जबकि लोअर ओबीसी तबके में यह आंकड़ा 47 प्रतिशत था।
कांग्रेस से दूर हुआ ओबीसी तबका
कांग्रेस को 2009 के लोकसभा चुनाव में अपर ओबीसी का 23 प्रतिशत जबकि लोअर ओबीसी का 27 प्रतिशत वोट मिला था लेकिन 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में यह आंकड़ा बहुत ज्यादा गिर गया।
2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को अपर ओबीसी का 15 प्रतिशत जबकि लोअर ओबीसी का 16 प्रतिशत वोट मिला और 2019 के लोकसभा चुनाव में क्रमश: अपर और लोअर ओबीसी तबके ने उसे 15-15 प्रतिशत वोट दिया।
यह साफ है कि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में ओबीसी तबके ने कांग्रेस के मुकाबले बीजेपी को बड़ी संख्या में वोट दिया और इसका सीधा असर कांग्रेस के प्रदर्शन पर पड़ा। 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 206 सीटों पर जीत मिली थी लेकिन 2014 में यह आंकड़ा सिर्फ 44 और 2019 में 52 सीटों पर आकर रुक गया।
साल कांग्रेस को मिले OBC वोट बीजेपी को मिले OBC वोट
1996 25% 19%
1998 21% 26%
1999 25% 23%
2004 24% 23%
2009 24% 22%
2014 15% 34%
2019 15% 44%
क्षेत्रीय दलों को भी झटका
इसके साथ ही क्षेत्रीय दलों को भी मिले ओबीसी वोटों के प्रतिशत में खासी गिरावट आई। 2009 में क्षेत्रीय दलों को
ओबीसी वर्ग का 42 प्रतिशत वोट मिला जबकि 2014 में यह आंकड़ा 43 प्रतिशत लेकिन 2019 में तो यह गिरकर 27 प्रतिशत ही रह गया। अगर अपर और लोअर ओबीसी के लिहाज से देखें तो क्षेत्रीय दलों को 2009, 2014 और 2019 में अपर ओबीसी का क्रमश: 43, 47 और 29 प्रतिशत वोट मिला जबकि लोअर ओबीसी में यह आंकड़ा 30, 33 और 22 प्रतिशत रहा।
30 प्रतिशत वोट का आंकड़ा
सीएसडीएस-लोकनीति के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि यदि बीजेपी या कांग्रेस को 30 प्रतिशत से कम ओबीसी वोट मिलता है तो केंद्र में उसे स्पष्ट बहुमत नहीं मिल पाता। लेकिन अगर इनमें से कोई दल 30 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल कर लेता है तो उसे सरकार बनाने के लिए जादुई आंकड़े (272) से ज्यादा सीटें मिल जाती हैं। बीजेपी के मामले में साल 2014 और 2019 में ऐसा स्पष्ट रूप से हो चुका है।
1996 में कांग्रेस को 25 प्रतिशत और बीजेपी को 19 प्रतिशत, 1998 में कांग्रेस को 21 और बीजेपी को 26 प्रतिशत वोट मिले। इसके अलावा 1999 में कांग्रेस को 25 और बीजेपी को 23 प्रतिशत, 2004 में कांग्रेस को 24 और बीजेपी को 23 प्रतिशत और 2009 में कांग्रेस को 24 प्रतिशत और बीजेपी को 22 प्रतिशत वोट मिले। इस दौरान किसी भी दल को अपने दम पर स्पष्ट बहुमत नहीं मिल सका क्योंकि बीजेपी और कांग्रेस 30 प्रतिशत से ज्यादा वोट हासिल नहीं कर सके थे।
लगातार दो लोकसभा चुनाव हार चुकी कांग्रेस के सामने क्या हैं चुनौतिया
मोदी को ओबीसी चेहरा बनाया
बीजेपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने सबसे बड़े ओबीसी चेहरे के रूप में पेश करती है जबकि कांग्रेस लगातार जातिगत जनगणना की मांग करने का मुद्दा उठाती रही है। कांग्रेस का कहना है कि बिना जातिगत जनगणना के ओबीसी तबके को न्याय नहीं मिल सकता। तमाम विपक्षी दल बीजेपी पर जातिगत जनगणना के मुद्दे को लटकाने का आरोप लगाते हैं।
बीजेपी ने राजीव गांधी पर लगाया आरोप
बीजेपी आरोप लगाती है कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने का विरोध किया था। मंडल आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद केंद्र सरकार की नौकरियों में ओबीसी तबके के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण लागू किया गया था।
बीजेपी का कहना है कि आजादी के बाद के 70 सालों तक पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा नहीं दिया गया था और यह मोदी सरकार थी जिसने ओबीसी तबके के हित में यह काम किया। इसके अलावा केंद्र सरकार में पहली बार ओबीसी वर्ग से 27 नेताओं को मंत्री बनाया गया। बीजेपी का कहना है कि मोदी सरकार ने ही सैनिक स्कूल, केंद्रीय विद्यालय और नवोदय स्कूलों में पिछड़े वर्ग को आरक्षण दिया।
सामाजिक न्याय की राजनीति
भारत में मंडल आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद सामाजिक न्याय की राजनीति ने जोर पकड़ा और इसके तहत यह कहा गया कि समाज के ऐसे तबके या ऐसी जातियां जिन्हें उनकी आबादी के हिसाब से सत्ता में भागीदारी नहीं मिली है, उन्हें सत्ता में भागीदारी मिलनी चाहिए।

Related Articles

Back to top button