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एक मार्मिक परिवर्तन ग्राहिताओं के आत्मसम्मान प्रति सुनिश्चित करें:टिया चौहान…!

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एक मार्मिक परिवर्तन ग्राहिताओं के आत्मसम्मान प्रति सुनिश्चित करें:टिया चौहान…!

कोई भी जीव किसी के पास तीन तथ्यों के आधार से जुड़ाव रखता है-स्वभाव,प्रभाव या अभाव ;सत्य है ईश्वर साक्षात् नहीं आते बल्कि सहयोग के लिए यहीं हमारे मध्य किसी धवल आत्मा के जरिए मदद करते हैं।यूं तो दान दाताओं की मनोदशा जरूरतमंदों के लिए निश्छल व भावनात्मक ही होती है किंतु फैले झोली के स्वाभिमान की रक्षा करना भी एक दानी का उतना ही धर्म है।कोई बेसुध सा एकाएक यह बोले की आज ऐसी आत्मग्लानि क्यों तो कहना चाहूँगी कुछ तत्वों का अनुभव होना समय के हाथों सुनिश्चित रहता है;जी हाँ कई बंधुओं ने अनुसरणीय सानिध्यता तले ऐसे नेक कार्यों में समय दान दिया होगा उस दौरान दाता व ग्रहिता में यथास्थान मार्मिक सम्बन्ध एक बालक तथा मातृत्व को आसानी से देखा भी गया होगा,मन हल्का हो जाता है मानो जैसे भजन अंतरमन को रम जाए उल्लेख करते समय सभी व्यक्तियों के सेवाकार्यों को नमन करती हूँ गर्व करती हूँ अब आती बात उसके दूसरे पहलु की तो श्रेणि चाहे याचक की हो या मुख्यमंत्री, उनको लेकर एक हार्दिक अनुभूत है की सभी सम्मान के अधिकारी हैं। बिलकुल हर छोटे-बड़े सहयोग को उजागर करना चाहिए क्या पता कब,कहाँ,क्या,किसके लिए प्रेरणास्रोत साबित हो जाए अथवा कितनों के हृदय में दया भाव जाग जाए कहा नहीं जा सकता इसी कड़ी में यथास्थान सेवाओं की सामग्री व स्वयं को प्रदर्शित कर लेना सेवा का सर्वोत्तम संदेश है जिसे सदैव सर्वत्र करना चाहिए ध्यान में केवल किसी के आँखों से झरते दयनियता को एहसान का एहसास ना होने पाए;उसके कष्टों को हरते वक्त जगजाहीर करने की रीति परिवर्तित कर परमात्मा के श्री चरणों में समर्पित कर देना एक उत्तम दानी की शालीन नैतिकता को दर्शा सकता है।

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