छत्तीसगढ़बिलासपुर

आदिवासियों के बीच शिक्षा का अलख जगाने वाले खेरा को लोगो ने किया याद…

Advertisement

प्रोफेसर डॉ. प्रभुदत्त खेरा की आज प्रथम पुण्यतिथि पर शत् शत् नमन…

23-सितंबर,2020

ब्यूरो चीफ जगदीश देवांगन की रिपोर्ट:-

मुंगेली-(सवितर्क न्यूज़) दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रो. पीड़ी खेरा अपने स्टूडेंट्स की टीम लेकर स्टडी टूर पर छत्तीसगढ़ आये थे। उन्हें अचानकमार टाइगर रिजर्व में बैगा आदिवासियों पर अध्ययन करना था। वे एटीआर के लमनी पहुचे, इसके बाद वे यही के होकर रह गए। अपना पूरा जीवन बैगा आदिवासियों का जीवन स्तर सुधारने, उन्हें शिक्षा से जोड़ने में लगा दिया। पिछले वर्ष 23 सितम्बर को वे हमारे बीच से चले गए। लमनी सहित आप पास के गांव के लोग आज भी याद करते हैं। विडंबना यह की कुटिया उजड़ने की कगार पर है। उनकी स्मृतियों को सहेजने के लिए कोई प्रयास होता नजर नही आ रहा है। प्रो. खेरा का जन्म वर्ष 1928 में लाहौर में हुआ था विभाजन के बाद उनका परिवार पाकिस्तान से भारत आ गया। दिल्ली में रहकर पढ़ाई की। गणित में एमएससी व समाज शास्त्र में एम ए के अलावा पीएचडी की डिग्री हासिल की। दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर बने। वे 1983 में दिल्ली यूनिवर्सिटी के समाज शास्त्र विभाग के छात्रों की टीम लेकर अचानकमार के घने जंगलों में बैगा आदिवासियों पर अध्ययन करने आए थे। उन्हें आदिवासियों के जीवन स्तर को सुधारने की एक रिपोर्ट भी केंद्र सरकार को सौंपनी थी।

यहां आदिवासियों की बुरी हालत देख प्रो. खेरा ने यहीं रुकने का मन बनाया. साथ आये छात्रों को एक हफ्ते की छुट्टी की अर्जी देकर लौटा दिया. कुछ समय बाद उन्होंने खुद को इन्ही जंगलों के नाम कर दिया. अपनी पेंशन के पैसों से यहाँ उन्होंने स्कूल भी बनवाया, यहाँ वे खुद बच्चों को पढ़ाते थे।

अचानकमार के घने जंगलों के बीच 30 साल तक कुटिया बनाकर बैगा आदिवासियों के बीच शिक्षा का अलख जगाने वाले दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डॉ. प्रभुदत्त खेडा़ की आज प्रथम पुण्यतिथि पर शत् शत् नमन।
💐🙏

आदिवासी बच्चों के बीच वे दिल्ली वाले बाबा के नाम से जाने जाते थे।

प्रोफेसर खेडा़ त्याग, संकल्प और निःस्वार्थ सेवा की प्रतिमूर्ति थे।
विनम्र श्रद्धांजलि…💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

Related Articles

Back to top button