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फर्जी मुठभेड़ की फिर से जांच से SC का इनकार:याचिकाकर्ता पर 5 लाख रुपए का जुर्माना, दंतेवाड़ा में 17 आदिवासी मारे गए थे

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2009 में पुलिस पर आदिवासियों की हत्या करने का आरोप लगाकर दायर की थी याचिका

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में साल 2009 में 17 आदिवासियों की कथित हत्या व पुलिस मुठभेड़ की जांच की मांग को लेकर दायर याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने नक्सलियों को बचाने वाले संगठनों की जांच के लिए राज्य सरकार को छूट दी है। दरअसल, सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से बताया गया था कि सरकार के नक्सलियों के हिंसक गतिविधियों के खिलाफ कार्रवाई पर अड़ंगा लगाने के लिए कुछ लोग और संगठन मिलकर अदालत का सहारा लेते हैं, जिसकी जांच कर ऐसे लोगों पर कार्रवाई करने की आवश्यकता है।

सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें बताया गया था दंतेवाड़ा जिले में साल 2009 में 17 आदिवासियों की मौत हुई थी। उनका आरोप था कि जिन ग्रामीणों की हत्या की गई है, उनमें कई लोग एक ही परिवार से हैं और बच्चे से लेकर बुजुर्ग महिला भी शामिल हैं। लेकिन, सुरक्षा बलों ने इसे नक्सली मुठभेड़ बताया है। याचिका में इस मामले की केंद्र सरकार की एजेंसी NIA या CBI से जांच कराने की मांग की थी।

रिपोर्ट में बताया- अज्ञात लोगों ने की थी ग्रामीणों की हत्या
हिमांशु कुमार ने साल 2009 में दंतेवाड़ा जिले की तीन अलग-अलग घटनाओं में 17 ग्रामीणों की मौत को लेकर अपनी तरफ से रिकॉर्ड गए बयानों के आधार पर याचिका दायर की थी। फरवरी 2010 में कोर्ट ने दिल्ली के जिला जज जीपी मित्तल को 12 आदिवासी याचिकाकर्ताओं के बयान रिकॉर्ड करने के लिए कहा था। कोर्ट ने पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी कराने के लिए भी कहा था। साथ ही आदिवासियों को सुरक्षा देने के भी आदेश जारी किए थे। इसके बाद जिला जज ने 19 मार्च 2010 को बयानों के संबंध में रिपोर्ट दाखिल की थी। तब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र व राज्य शासन सहित सभी पक्षों को रिपोर्ट देने के आदेश दिए थे। इस साल केंद्र ने गृहमंत्रालय के माध्यम से बताया कि जिला जज की एक रिपोर्ट कोर्ट रिकॉर्ड्स से गायब हो गई थी, जो सरकार को मार्च 2022 में मिली। इस रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि शिकायतकर्ताओं ने जिला जज के सामने बयान दिए थे कि कुछ अज्ञात लोगों ने जंगल से आकर ग्रामीणों की हत्या की है। साथ ही किसी ने भी सुरक्षा बलों के सदस्यों पर सवाल नहीं उठाए थे।

केंद्र सरकार ने की थी एजेंसी से जांच कराने की अपील
इस दौरान केंद्र सरकार ने कोर्ट से किसी भी केंद्रीय एजेंसी को जांच के निर्देश देने की अपील की थी। इसके जरिए उन लोगों और संगठनों की पहचान की बात की गई थी, जो हिंसक नक्सल गतिविधियों में शामिल लोगों को बचाने के लिए अदालत का सहारा लेते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने लगाया पांच लाख रुपए जुर्माना, जांच के फैसले को राज्य सरकार पर छोड़ा
जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता हिमांशु कुमार और 12 अन्य लोगों की तरफ से साल 2019 में दाखिल याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने 19 मई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। अब अपने फैसले में कोर्ट ने याचिकाकर्ता कुमार को चार सप्ताह के भीतर पांच लाख रुपए जुर्माना जमा करने का आदेश दिया है। राशि जमा नहीं करने की स्थिति में हिमांशु कुमार के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। कोर्ट ने केस दर्ज कराने की अनुमति भी दे दी है। लेकिन, इसका फैसला राज्य सरकार पर छोड़ दिया है। साथ ही याचिकाकर्ता पर झूठा केस दर्ज कराने के लिए कार्रवाई करने की छूट दी है।

याचिकाकर्ता बोले- न्याय के लिए ही है अदालत
इधर, सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर याचिकाकर्ता हिमांशु कुमार ने कहा कि कोई भी व्यक्ति न्याय के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाता है। लेकिन, इस केस में बिना जांच के ही फैसला दे दिया गया है। उन पर आरोप लगा है कि उन्होंने झूठे केस में याचिका दायर की थी। उनका कहना है उन्होंने याचिका में हत्याकांड की जांच कराने की मांग की थी। ऐसे में बिना जांच के उन्हें दोषी कैसे माना जा सकता है।

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