हे नाथ, सलामत रहेगा शिव राज… मध्यप्रदेश का नया जनादेश
(साकेत स्वामी)
10-नवम्बर,2020
{सवितर्क न्यूज़} भोपाल उपचुनाव के जरिए मध्यप्रदेश का नया जनादेश कह रहा है कि जनता ने शिवराज सरकार को पूरी तरह स्वीकार कर लिया है। उपचुनाव के परिणाम भाजपा के पक्ष में स्पष्ट रूप से जाते नजर आने के साथ ही कांग्रेस में स्वाभाविक निराशा का भाव देखा जा सकता है लेकिन इस हार को शुद्ध मन से भला वह कैसे मंजूर कर सकती है। कांग्रेस को चमत्कार की उम्मीद थी और एग्जिट पोल में भाजपा की सफलता के संकेत को वह हवा हवाई मान रही थी। इसमें कोई संदेह नहीं कि एग्जिट पोल हकीकत नहीं होते। बिहार में बदली हुई तस्वीर सामने आ ही गई। ऐसी स्थिति में यदि मध्य प्रदेश में कांग्रेस एग्जिट पोल को स्वीकार नहीं कर पा रही थी तो इसमें कोई गलत बात नहीं है। भला बिहार के एग्जिट पोल को भाजपा और एनडीए भी कैसे कबूल सकते थे। वहां पलटी हुई बाजी ने मध्यप्रदेश कांग्रेस के सपनों को कोई उम्मीद नहीं बख्शी। यदि बिहार में एग्जिट पोल फेल हुआ तो मध्यप्रदेश में भी ऐसा होने की संभावना कांग्रेस महसूस कर सकती थी, कर ही रही थी लेकिन यहां ऐसा कुछ नहीं हुआ मध्य प्रदेश में एग्जिट पोल खरा उतर गया। यह कांग्रेस के लिए निराश होने का विषय नहीं है बल्कि संघर्ष की शक्ति जुटाने का समय है। कांग्रेस ने सोचा था कि वह उपचुनाव में गद्दारों को सबक सिखा कर शिवराज सरकार को वापस सत्ता से सड़क पर ला देगी लेकिन कांग्रेस की नजर में जो गद्दार थे, वह जनता की नजर में गद्दार नहीं निकले। राजनीति में राजनीतिक दलों और मतदाता की सोच में क्या फर्क होता है, यह इस उपचुनाव के परिणाम ने साबित कर दिया है। कांग्रेस अब भी यही संदेह पाल सकती है कि कहीं कुछ न कुछ गड़बड़ हुई है सरकारी तंत्र का दुरुपयोग, मशीनों की गड़बड़ी जैसे आरोप तो राजनीति में हमेशा तैयार रहते ही हैं। किन्तु कांग्रेस के तमाम बड़बोले नेताओं सहित स्वयं पूर्व मुख्यमंत्री और मध्य प्रदेश कांग्रेस के नाथ को यह स्वीकार करना ही होगा की जनता ने कहीं न कहीं कांग्रेस को 2018 के पहले वाली स्थिति के ही मुनासिब समझा। मामूली बढ़त के साथ भाजपा को पटखनी देकर सरकार बनाने वाले कमलनाथ ने सवा साल में यदि हालात के मुताबिक सियासी फैसले किए होते और सावधानीपूर्वक केवल अपने विवेक से राजनीति की होती तो उन्हें ज्योतिरादित्य सिंधिया गुट से वह झटका नहीं मिला होता जो आज पूरी तरह स्पष्ट कर गया कि कांग्रेस और कमलनाथ को मध्य प्रदेश की जनता ने नकार दिया है। राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं होता। लेकिन सिंधिया के समर्थकों ने जिस तरह उनके एक इशारे पर कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाना पसंद किया, सरकार गिरवाई और भाजपा की सरकार में शामिल हुए तथा जिस तरह से भाजपा ने इन पूर्व कांग्रेसियों पर दांव लगाया, उससे यह स्पष्ट हो गया कि यह सियासी सौदा गलत नहीं था। राजनीति में चुनावी सफलता ही सौदे के गलत और सही होने का फैसला करती है। यहां संख्या बल चलता है। इसी के आधार पर फैसले होते हैं। तो अब मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार पूरी तरह मजबूत हो चुकी है। आने वाले समय में कांग्रेस को फिर से जनाधार तैयार करने के लिए अभी से जुट जाना चाहिए। वैसे 15 साल बाद मिली सत्ता को कांग्रेस ने जिस तरह सवा साल में खो दिया, वह उसके लिए चिंतन का विषय तो था ही, उपचुनाव में भी जनता का समर्थन न मिल पाना भी सबसे बड़े आत्ममंथन का अवसर है। नए जनादेश के साथ शिवराज का स्वागत है। कमलनाथ तथा कांग्रेस को सार्थक संघर्ष के लिए शुभकामनाएं।